Sunday, 3 August 2008

छाप-- मेरी बुलबुल कि पैसा मिलेगा--1

आप सोच रहे होंगे कि आखिर मुझे यह किस घटिया शौक ने पकड़ लिया हैं,जी नही मॆं पैरोडी बनाने कि घटिया शौक का शिकार नही हुआ हूँ, बल्कि जरा गौर से सुनिए ये पैरोडी तो हमारे देश कि हवाओं में खुद बन सवर रही हैं
जमाना हैं "रियल्टी शोज़ " का, हमारे सल्लू जी छपवा रहे हैं, पञ्च सवालों से एक आदमी का दम देख रहे हैं. "कितने प्रतिशत भारतीय ......."इसमें सवालों पर बोलना होता हैं, उसके जबाब देने होते हैं. कभी कभी बड़ी मुश्किल होती हैं, हरने का खतरा होता हैं. ना न ना,ना इसमें हमारे सांसद नही जा सकते, उन्हें जबाब देना नही भाता किसी को भी नही जनता को तो बिकुल भी नही. लेकिन "रियल्टी शोज़" का क्रेज़ हैं, उसका अपना थ्रिल हैं, रोमंच हैं, रहस्य हैं, उसमें गज़ब की संवेदना और सबसे आखिर मॆं रुपये हैं ,ओहदे हैं ,इतिहास में अमर होने का अपना मतलब होता हैं.
बहरहाल एक रियल्टी शो --- "न्यूक्लियर डील"
इधर हमारी राजनीति (माफ़ी चाहूँगा --राजतन्त्र, आजकल हमारे यहाँ नीति का सर्वथा अभाव हैं वो अंग्रेजी में कहते हैं न "out of stock",बशर्ते कुतर्कों के माद्यम से अनीति/ कुनीति को नीति का सगे वाला न साबित किया जाय) मॆं कुछ महात्माओं की ग्रह-दशा बड़ी खराब चल रही थी,जो कभी राजतन्त्र के राखी सावंत (आईटम मेंबर) हुआ करते थे उनकी वर्तमान हालत भी "राखी सावंत" जैसी ही थी. बदहाल, बदहवास,और बेदखल. खदान से क्या निकले गए की हीरों ने चमकना ही छोड़ दिया, बुजुर्ग थे "नाच बलिये" में जा नही सकते और न ही उनके पास इतने गुर्गे थे कि "रंगदारी" मांग सकें ..........शोकाकुल थे कि अचानक उंट पहाड़ के निचे आ आ गया, जिन नीली पगड़ी वाले ने उन्हें लात मार बाहर किया था वो शकाक्छात लात समेट, उनके चरणों में बैठे थे ....."गुरु जी हमारी तरफ से छाप दीजिये आपको आपका सब कुछ दुबारा मिलेगा.....गुरु जी बोले "वो तो हमारा था ही तुम्हारा क्या हैं जो तुम हमें दो गे ,.........इक राज्य का सी ऍम या नगद जो चाहिए वो मिलेगा....... तो फिर "न्यूक्लियर डील" पक्का गुरु जी बोले
आगे कि दास्ताँ कल

2 comments:

शेरघाटी said...

भाई, बहुत अच्छा प्रयास है.दोनों पोस्ट देखा.लिखते रहो.कमेन्ट कि चिंता मत करना.राहुल जी ने कहा था:लिखना जब ज़रूरी हो जाए और बेचैनी बढती रहे तो बस लिख डालो.ये मत सोचो कि लोग क्या कहेंगे.
यही दुआ है, ज़ोर-क़लम और ज़्यादा.

आभार, भी आपने hamzabaan का लिंक भी दिया है.

Smart Indian said...

अंधेर नगरी चौपट राजा, टेक सेर भाजी टेक सेर खाजा
स्वार्थ से ही "अबे जा जा", स्वार्थ से ही "वापस आ जा"