Saturday 26 July, 2008

"कब तक ??????"

{"दिल के फफोले जल उठेसिने की आग से
घर को लग गई आग घर के चिराग से "}-:अज्ञात
याद है मुझे वह
जब ढलता-ढलता सा सूरज था ,
था उगता , उगता सा चाँद
सूरज ही क्यों पुरा दिन ही ढलता-ढलता सा रहा
आसमान उस संवेदनशील अधेढ़ की
तरह पुरे दिन सिसकता रहा
कभी जम कर नही रोया
धुप आसमान को उस अधेड की

पत्नी की तरह सम्हालती रही, सहलाती रही
लेकिन उसने रोना कहाँ छोडा
पर पता नही आज आसमान के सर
विप्पतियों का कोण सा आसमान टूट पडा ( आज वह इतना क्यों रो रहा हैं )
इतना तो वह अधेड़ उस दिन भी मनाही रोया था
जब उसका बेटा ,नोकरी पा कर
मुंबई की लोकल ट्रेन से लोट रहा लोट रहा था

और बम धमाकों मॆं
मारा गया .............
लेकिन हाँ वह उस दिन रोया था -
जब वह अपने बेटे का शव लेने
अस्पताल गया था
और उसे 1200 रूपए देने पड़े थे
सबको पुलिस और अस्पताल के कर्मचारियों को
अपने बेटे की मोत की मिटाई खाने के लिए
रोया था वह उस दिन
और आज ठीक उसी तरह
आसमान रो रहा हैं
शायद उस अधेढ़ के दर्द को याद कर रहा हैं
और सोच रहा हैं आखिर कब तक -
बाप बांटेगा मिटाई अपने बेटे की मोत पर .........
आखिर कब तक ???????